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poetry
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कबीर सोया क्या करे, उठ ना रोवे दुख
जाका वासा गोर में, सो क्यों सोवे सुख
जीवन मरण विचार कर, कूड़े काम निवार
जिन पंथों तुझ चालना, सोई पंथ संवार
जिन पंथों तुझ चालना, सोई पंथ संवार